§3ـ सितारे (सानेट)
निकल-कर जू-ए नग़्मा ख़ुल्द-ज़ार-ए माह‐ओ‐अंजम से
फ़ज़ा की वुस्अतों में है रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
ब सू-ए नौहा-आबाद-ए जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
निकल-कर आ रही है इक गुलिस्तान-ए तरन्नुम से!
सितारे अपने मीठे मद भरे हलके तबस्सुम से
किये जाते हैं फ़ित्रत को जवाँ आहिस्ता आहिस्ता
सुनाते हैं उसे इक दास्ताँ आहिस्ता आहिस्ता
दियार-ए ज़िंदगी मद-होश है उन के तकल्लुम से
यही आदत है रोज़-ए अव्वलीं से उन सितारों की
चमकते हैं कि दुनिया में मसर्रत की हुकूमत हो
चमकते हैं कि इंसाँ फ़िक्र-ए हस्ती को भुला डाले
लिये है ये तमन्ना हर किरन उन नूर पारों की
कभी ये ख़ाक-दाँ गहवारा-ए हुस्न‐ओ‐लताफ़त हो
कभी इंसान अपनी गुम-शुदह जन्नत को फिर पा ले!